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Biology जीवविज्ञान Class 11th Lesson 2 जीव जगत का वर्गीकरण | Bihar Board Chapter 2 Jivvigyan

1.वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
2.निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्त्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए –
(क) परपोषी बैक्टीरिया
(ख) आद्य बैक्टीरिया।
3.डायटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
4.‘शैवाल पुष्पन’ (Algal Bloom) तथा ‘लाल तरंगे’ (red-tides) क्या दर्शाती हैं?
5. वाइरस से विरोइड कैसे भिन्न होते हैं?
6.प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
7.पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं, जो आंशिक रूप से परपोषित हैं?
8.शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता लगता है?
9.कवक (फंजाई) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर करो –
(क) पोषण की विधि
(ख) जनन की विधि।
10.यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं?
11.संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के संदर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दो। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखें।
12.अपनी कक्षा में इस शीर्षक “क्या वाइरस सजीव है अथवा निर्जीव”, पर चर्चा करें।

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Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण
August 31, 2020April 24, 2021

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण
Bihar Board Class 11 Biology जीव जगत का वर्गीकरण Text Book Questions and Answers
प्रश्न 1.
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण की पद्धतियाँ (Systems of Classification of livings):
अरस्तू ने जीवधारियों को दो समूहों-जन्तुओं एवं वनस्पतियों में विभाजित किया। लीनियस ने अपनी पुस्तक सिस्टेमा नेचुरी (Systema Naturae) नामक पुस्तक में द्विजगत पद्धति प्रस्तुत की। जन्तु जगत में एककोशिकीय प्रोटोजोआ एवं बहुकोशिकीय जन्तुओं को तथा पादप जगत में हरे पौधे, मॉस, समुद्री घास-पात, मशरूम, लाइकेन; कवक, जीवाणु आदि को रखा गया है। द्विजगत पद्धति में प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक कोशिका वाले जीवों को एक साथ रखा गया है।

इस वर्गीकरण में हरे पादपों एवं कवकों को, एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीवों को तथा प्रकाश संश्लेषी एवं अप्रकाश संश्लेषी जीवों को एक साथ रखा गया है। युग्लीना, क्लैमाइडोमोनास, माइकोप्लाज्मा आदि को कुछ वैज्ञानिक जन्तु जगत में और कुछ पादप जगत में वर्गीकृत करते हैं। इसलिए जीव-वैज्ञानिक हीकल (Haeckal 1886) ने तीसरे जगत प्रोटिस्टा (protista) का प्रस्ताव रखा। इसमें जीवाणुओं, कवक, शैवाल तथा प्रोटोजोआ को सम्मिलित किया गया।

आर० एच० हीटेकर ने दो और तीन जगत वाले वर्गीकरण की कमियों को दूर करने के लिए पाँच जगत वाली प्रणाली का प्रस्ताव किया। जीवधारियों को पाँच जगत –

मोनेरा
प्रोटिस्टा
प्लान्टी
फंजाई
एनिमेलिया में वर्गीकृत किया। यह वर्गीकरण कोशिका के प्रकार, कोशिकीय या शारीरिक संगठन, कोशिका भित्ति, पोषण, प्रचलन, पारिस्थितिक भूमिका, जनन एवं जातिवृत्तीय सम्बन्धों पर आधारित है
प्रश्न् 2.
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्त्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए –
(क) परपोषी बैक्टीरिया
(ख) आद्य बैक्टीरिया।
उत्तर:
(क) परपोषी बैक्टीरिया (Heterotrophic Bacteria):
ये प्रकृति में बहुतायत में पाए जाते हैं। इनमें से अधिकतर अपघटक (decomposers) होते हैं। ये मृतजीवी होते हैं। ये पौधों और जन्तुओं के मृत शरीर पर आक्रमण करके उनके जटिल यौगिकों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इसके फलस्वरूप खनिज तत्वों का पुन: चक्रीकरण होता रहता है।

अनेक परजीवी बैक्टीरिया मृदा की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होते हैं। जीवाणु दूध को दही में बदलने में, चाय तथा तम्बाकू की पत्तियों के किण्वन द्वारा स्वाद और सुगन्ध को बढ़ाने में; जूट, पटसन, सन आदि से रेशे प्राप्त करने; चमड़ा तैयार करने में प्रतिजैविक औषधियाँ तैयार करने आदि क्रियाओं में सहायक होते हैं।

अनेक परपोषी बैक्टीरिया रोगजनक होते हैं। ये परजीवी होते हैं। इनसे मनुष्य में तपेदिक, निमोनिया, टाइफॉइड, हैजा, पेचिश, कुष्ठरोग, सिफलिस आदि रोग हो जाते हैं। अनेक मृतजीवी हानिकारक जीवाणु खाद्य पदार्थों को नष्ट करते हैं। संक्रमित खाद्य पदार्थों के उपयोग से खाद्य विषाक्तता (food poisoning) हो जाती है।

(ख) आद्य बैक्टीरिया (Archaebacteria):
ये विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। ये अत्यन्त विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं; जैसे-अत्यन्त लवणीय क्षेत्र (हैलोफी), गर्म जल स्रोतों (थर्मोएसिडोफिलस) एवं कच्छ क्षेत्र (मेथेनोजन) आदि में। मेथेनोजन अनेक जुगाली करने वाले पशुओं (रूमिनेट) की आंत्र में पाए जाते हैं। ये गोबर से मेथेन (methane) का उत्पादन करते हैं। मेथेन को बायोगैस कहते हैं।
प्रश्न 3.
डायटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
डायटम की कोशिका भित्ति दो अविछादित कवच बनाती है। कोशिका भित्ति में सिलिका पाया जाता है। मृतडायटम के अवशेष डायटमी मृदा बनाते हैं।

प्रश्न 4.
‘शैवाल पुष्पन’ (Algal Bloom) तथा ‘लाल तरंगे’ (red-tides) क्या दर्शाती हैं?
उत्तर:
शैवाल पुष्पन:
जलाशयों में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा के कारण शैवालों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि को शैवाल पुष्पन कहते हैं। यह जलाशय के अन्य छोटे जन्तुओं के लिए हानिकारक होता है क्योंकि रात्रि में ऑक्सीजन की कमी होने से जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।

लाल तरंगे:
अधिकतर लाल डायनोफ्लैजिलेट में तेजी से जनन के कारण संख्या में वृद्धि होती है, जिससे समुद्र का जल लाल दिखाई देने लगता है। इसे लाल तरंग कहते हैं।

प्रश्न 5.
वाइरस से विरोइड कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वाइरस तथा विरोइड में अन्तर (Difference between Virus and Viroid):
प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोटोजोआ जन्तु (Protozoans):
ये जगत प्रोटिस्टा (protista) के अन्तर्गत आने वाले यूकैरियोटिक, सूक्ष्मदर्शीय, परपोषी सरलतम जन्तु हैं। ये एककोशिकीय होते हैं। कोशिका में समस्त जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। ये परपोषी होते हैं। कुछ प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं। इन्हें चार प्रमुख समूहों में बाँटा जाता है –
(क) अमीबीय प्रोटोजोआ (Amoebic Protozoa):
ये स्वच्छ जलीय या समुद्री होते हैं। कुछ नम मृदा में भी पाए जाते हैं। समुद्री प्रकार के अमीबीय प्रोटोजोआ की सतह पर सिलिका का कवच होता है। ये कूटपाद (pseudopodia) की सहायता से प्रचलन तथा पोषण करते हैं। एण्टअमीबा जैसे कुछ अमीबीय प्रोटोजोआ परजीवी होते हैं। मनुष्य में एण्टअमीबा हिस्टोलाइटिका के कारण अमीबीय पेचिश रोग होता है।

(ख) कशाभी प्रोटोजोआ (Flagellate Protozoa):
इस समूह के सदस्य स्वतन्त्र अथवा परजीवी होते हैं। इनके शरीर पर रक्षात्मक आवरण पेलिकल होता है। प्रचलन तथा पोषण में कशाभ (flagella) सहायक होता है। ट्रिपैनोसोमा (Trypanosoma) परजीवी से निद्रा रोग, लीशमानिया से कालाअजार रोग होता है।

(ग) पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliate Protozoa):
इस समूह के सदस्य जलीय होते हैं एवं इनमें अत्यधिक पक्ष्माभ (cilia) पाए जाते हैं। शरीर दृढ़ पेलिकल से घिरा होता है। इनमें स्थायी कोशिकामुख (cytostome) व कोशिकागुद (cytopyge) पाई जाती हैं। पक्ष्माभों में लयबद्ध गति के कारण भोजन कोशिकामुख में पहुँचता है। उदाहरण-पैरामीशियम (Paramecium)
(घ) स्पोरोजोआ प्रोटोजोआ (Sporozoans):
ये अन्त:परजीवी होते हैं। इनमें प्रचलनांग का अभाव होता है। कोशिका पर पेलिकल का आवरण होता है। इनके जीवन चक्र में संक्रमण करने योग्य बीजाणुओं का निर्माण होता है। मलेरिया परजीवी-प्लाज्मोडियम (Plasmodium) के कारण कुछ दशक पूर्व होने वाले मलेरिया रोग से मानव आबादी पर कुप्रभाव पड़ता था।
प्रश्न 7.
पादप स्वपोषी हैं। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं, जो आंशिक रूप से परपोषित हैं?
उत्तर:
पादप स्वपोषी यूकैरियोटिक होते हैं। इनमें पर्णहरित पाया जाता है। सौर प्रकाश तथा पर्णहरित की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा ये अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं। कुछ पौधे परपोषी होते हैं। ये परजीवी, मृतजीवी, सहजीवी या कीटभक्षी होते हैं।

परजीवी पौधे (Parasitic plants):
ये पूर्ण आंशिक परजीवी होते हैं। अमरबेल (Cuscuta); रैफ्लीसिया (Rafflesia), गँठवा (Orabanche) पूर्ण परजीवी होते हैं। विस्कम (Viscum), चन्दन (Santalum) अपूर्ण परजीवी होते हैं। स्प्लेक्नम (Splachnum), निओशिया (Neotia) मृतपोषी होते हैं। लाइकेन, मटरकुल के पौधों की जड़ों पाए जाने वाले राइजोबियम जीवाणु, सहजीवी (symbiont) पादप के उदाहरण हैं। कीटभक्षी पौधे; जैसे-नेपेन्थीस (Nepenthes), ड्रोसेरा (Drosera), यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) आदि नाइट्रोजन की पूर्ति हेतु कीटों का भक्षण करते हैं।

प्रश्न 8.
शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता लगता है?
उत्तर:
लाइकेन सहजीवी पादप होते हैं, जो शैवाल तथा कवक के परस्पर सहयोग से बनते हैं। शैवलांश लाइकेन में शैवाल घटक है। यह लाइकेन का स्वपोषी भाग है जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है। कवकांश लाइकेन में कवक घटक है। यह परपोषी भाग है जो शैवाल को सुरक्षा प्रदान करता है और खनिज लवण तथा जल का अवशोषण करता है।

प्रश्न 9.
कवक (फंजाई) जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर करो –
(क) पोषण की विधि
(ख) जनन की विधि
प्रश्न 10.
यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
यूग्लीनॉइड के चारित्रिक लक्षण (Characteristic Features of Euglenoids)

अधिकांश स्वच्छ, स्थिर जल (stagnant fresh water) में पाए जाते हैं।
इनमें कोशिका भित्ति का अभाव होता है।
कोशिका भित्ति के स्थान पर रक्षात्मक प्रोटीनयुक्त लचीला आवरण पेलिकल (pellicle) पाया जाता है।
इनमें 2 कशाभ (flagella) होते हैं, एक छोटा तथा दूसरा बड़ा कशाभा।
इनमें क्लोरोप्लास्ट पाया जाता है।
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन निर्माण कर लेते हैं और प्रकाश के अभाव में जन्तुओं की भाँति सूक्ष्मजीवों का भक्षण करते हैं अर्थात् परपोषी की तरह व्यवहार करते हैं। उदाहरण-यूग्लीना (Euglena
प्रश्न 11.
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ की प्रकृति के संदर्भ में वाइरस का संक्षिप्त विवरण दो। वाइरस से होने वाले चार रोगों के नाम भी लिखें।
उत्तर:
वाइरस (Virus):
ये अकोशिकीय सजीव संरचनाएँ हैं। ये जीवित कोशिका को संक्रमित करके पोषद् कोशिका की उपापचय क्रियाओं को नियन्त्रित करके अपनी प्रतिकृति बनाते हैं, अर्थात् जनन करते हैं। वाइरस न्यूक्लियोप्रोटीन्स से बने होते हैं। इनमें DNA या RNA आनुवंशिक पदार्थ पाया जाता है। न्यूक्लिक अम्ल (DNA या RNA) चारों ओर से प्रोटीन के आवरण से घिरा रहता है। किसी भी वाइरस में DNA तथा RNA दोनों नहीं पाए जाते
सभी पादप वाइरस में एकरज्जुकी (single stranded) RNA होता है। सभी जन्तु वाइरस में एक अथवा दो रज्जुकी RNA अथवा DNA होता है। जीवाणुभोजी या जीवाणु वाइरस में द्विरज्जुकी (double stranded) DNA अणु होता है। वाइरस में पाए जाने वाला DNA या RNA आनुवंशिक होता है।

वाइरस से होने वाले रोग (Disease caused by Virus):
मनुष्य में एड्स, हिपैटाइटिस, चेचक, मम्प्स (mumps), हपीज, इन्फ्लु एन्जा (influenza) नामक रोग वाइरस के कारण होते हैं। पौधों में मोजैक रोग, अवरूद्ध वृद्धि, पत्तियों का मुड़ना तथा कुंचन आदि वाइरस के कारण होने वाले रोग हैं
प्रश्न 12.
अपनी कक्षा में इस शीर्षक “क्या वाइरस सजीव है अथवा निर्जीव”, पर चर्चा करें।
उत्तर:
वाइरस (Virus):
इनकी खोज सर्वप्रथम इवानोवस्की (Iwanovsky, 1892), ने की थी। ये प्रूफ फिल्टर से भी छन जाते हैं। एम० डब्ल्यू. बीजेरिन्क (M.W. Beijerinck, 1898) ने पाया कि संक्रमित (रोगग्रस्त) पौधे के रस को स्वस्थ पौधों की पत्तियों पर रगड़ने से स्वस्थ पौधे भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसी आधार पर इन्हें तरल विष या संक्रामक जीवित तरल कहा गया। डब्ल्यू० एम० स्टैनले (W. M. Stanley, 1935) ने वाइरस को क्रिस्टलीय अवस्था में अलग किया। डार्लिंगटन (Darlington, 1944) ने खोज की कि वाइरस न्यूक्लियोप्रोटीन्स से बने होते हैं।

वाइरस को सजीव तथा निर्जीव के मध्य की कड़ी (connecting link) मानते हैं।

वाइरस के सजीव लक्षण (Living Characters of Virus):

वाइरस प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल (DNA या RNA) से बने होते हैं।
जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने पर सक्रिय हो जाते हैं। वाइरस का न्यूक्लिक अम्ल पोषक कोशिका में पहुंचकर कोशिका की उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करके स्वद्धिगुणन करने लगता है और अपने लिए आवश्यक प्रोटीन का संश्लेषण भी कर लेता है।
इसके फलस्वरूप विषाणु की संख्या की वृद्धि अर्थात् जनन होता है।
वाइरस में प्रवर्धन केवल जीवित कोशिकाओं में ही होता है।
इनमें उत्परिवर्तन (mutation) के कारण आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
वाइरस ताप, रासायनिक पदार्थ, विकिरण तथा अन्य उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते हैं।
वाइरस के निर्जीव लक्षण (Non-living Characters of Virus):

इनमें एन्जाइम्स के अभाव में कोई उपापचयी क्रिया स्वतन्त्र रूप से नहीं होती।
वाइरस केवल जीवित कोशिकाओं में पहुँचकर ही सक्रिय होते हैं। जीवित कोशिका के बाहर ये निर्जीव रहते हैं।
वाइरस में कोशा अंगक तथा दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल (DNA और RNA) नहीं पाए जाते।
वाइरस को रवों (crystals) के रूप में निर्जीवों की भाँति सुरक्षित रखा जा सकता है। रवे (crystal) की अवस्था में भी इनकी संक्रमण शक्ति कम नहीं होती

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