1. लहना सिंह का परिचय अपने शब्दों में दें।
2. ‘उसने कहा था’ कहानी
बार कब प्रकाशित हई थी ?
3. ‘उसने कहा था’ कहानी में किसने, किससे क्या कहा था ?
4. कहानी का शीर्षक ‘उसने कहा था’ सबसे सटीक शीर्षक है। अगर हां तो क्या आप इसके लिए कोई दूसरा शीर्षक सुझाना चाहेंगे। अपना पक्ष रखें।
5. ‘उसने कहा था’ कहानी का केन्द्रीय भाव क्या है ? वर्णन करें।
6. लहना सिंह के प्रेम के बारे में लिखिए
7. ‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है ? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है ?
8. कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें।
9. “जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।” वजीरा सिंह के इस कथन का क्या आशय है ?
10. “कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ?
11. “कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ?
12. लहना के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता है ?
13. ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर सूबेदारनी का चरित्र-चित्रण करें।
14. ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण करें।
1. लहना सिंह का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर ⇒ लहना सिंह ब्रिटिश सेना का एक सिक्ख जमादार है। वह भारत से दूर विदेश (फ्रांस) में जर्मन सेना के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा गया है। वह एक कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिक है। अदम्य साहस, शौर्य एवं निष्ठा से युक्त वह युद्ध के मोर्चे पर डटा हुआ है। विषम परिस्थितियों में भी कभी वह हतोत्साहित नहीं होता। अपने प्राणों की परवाह किए बिना वह युद्धभूमि में खंदकों में रात-दिन पूर्ण तन्मयता के साथ कार्यरत रहता है। कई दिनों तक खंदक में बैठकर निगरानी करते हुए जब वह ऊब जाता है तो एक दिन वह अपने सूबेदार से कहता है कि यहाँ के इस कार्य (ड्यूटी) से उसका मन भर गया है, ऐसी निष्क्रियता से वह अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। वह कहता है- “मुझे तो संगीन चढ़ाकर मार्च का हुक्म मिल जाए, फिर सात जर्मन को अकेला मारकर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो।” उसके इन शब्दों से दृढ़ निश्चय एवं आत्मोसर्ग की भावना निहित है। वह शत्रु से लोहा लेने के लिए इतना ही उत्कंठित है कि उसका कथन जो इन शब्दों में प्रकट होता है-“बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।” शत्रु की हर चाल को विफल करने की अपूर्व क्षमता एवं दूरदर्शिता उसमें थी।
उसके जीवन का एक दूसरा पहलू भी है उसकी मानवीय संवेदना, वचनबद्धता तथा प्रेम। अपनी किशोरावस्था में एक बालिका के प्रति उसका अव्यक्त प्रेम था। कालान्तर में वह सेना में भर्ती हो गया तथा संयोगवश उसे यह ज्ञात हुआ कि वह बालिका अब सूबेदार की पत्नी है, उससे भेंट होने पर सूबेदार की पत्नी ने अपने पति एवं फौज में भर्ती उसके अपने एकमात्र पुत्र की रक्षा का वचन लहना सिंह से लिया जिसका पालन लहना सिंह ने अपने प्राणों बाजी लगाकर किया। यह उसकी कर्तव्यपरायणता तथा वचन का पालन करने का उत्कृष्ट उदाहरण है
2. ‘उसने कहा था’ कहानी पहली बार कब प्रकाशित हई थी ?
उत्तर ⇒ उसने कहा था’ कहानी पहली बार 1915 में प्रकाशित हुई थी।
3. ‘उसने कहा था’ कहानी में किसने, किससे क्या कहा था ?
उत्तर ⇒ उसने कहा था’ कहानी में सुबेदारनी ने लहना सिंह से कहा कि जिस तरह उस समय उसने एक बार घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और एकमात्र पुत्र की भी वह रक्षा करें। वह उसके आगे अपना आँचल पसार कर भिक्षा माँगती है। यह बात लहना सिंह के मर्म को छू जाती है।
4. कहानी का शीर्षक ‘उसने कहा था’ सबसे सटीक शीर्षक है। अगर हां तो क्या आप इसके लिए कोई दूसरा शीर्षक सुझाना चाहेंगे। अपना पक्ष रखें।
उत्तर ⇒ जहाँ तक कहानी के शीर्षक का सवाल है उसकी उपयुक्तता स्पष्ट है-उसने कहा था। सूबेदारनी की बातें जहाँ स्वयं सूबेदारनी के चरित्र को उजागर करती है वहीं लहनासिंह के चरित्र में भी महत्त्वपूर्ण मोड़ लानेवाली साबित होती है। सूबेदारनी की बातें ही उनके बीच के संबंधों को भी उजागर करती हैं जो कहानी का मुख्य प्रतिपाद्य है। इसलिए सूबेदारनी के कहे वचन की ओर संकेत कराने वाला यह शीर्षक सटीक है। मृत्यु की ओर बढ़ते लहनासिंह के अंतिम क्षणों में भी सूबेदारनी के कहे शब्द ही गूंजते रहते हैं। यही शब्द लहनासिंह को । सूबेदारनी का विश्वास बनकर महान त्याग की प्रेरणा देता है।
5. ‘उसने कहा था’ कहानी का केन्द्रीय भाव क्या है ? वर्णन करें।
उत्तर ⇒ ‘उसने कहा था’ प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गयी कहानी है। गुलेरीजी ने लहनासिंह और सबेदारनी के माध्यम से मानवीय संबंधों का नया रूप प्रस्तुत किया है। लहना सिंह सूबेदारनी के अपने प्रति विश्वास से अभिभूत होता है, क्योंकि उस विश्वास की नींव में बचपन के संबंध है। सबेदारनी का विश्वास ही लहनासिंह को उस महान त्याग की प्रेरण देता है।
कहानी एक और स्तर पर अपने को व्यक्त करती है। प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर यह एक अर्थ में युद्ध-विरोधी कहानी भी है। क्योंकि लहनासिंह के बलिदान का उचित सम्मान किया जाना चाहिए था परन्तु उसका बलिदान व्यर्थ हो जाता है और लहनासिंह का करुण अंत
युद्ध के विरुद्ध में खड़ा हो जाता है। लहनासिंह का कोई सपना पूरा नहीं होता।
6. लहना सिंह के प्रेम के बारे में लिखिए।
उत्तर ⇒ लहना सिंह अपनी किशोरावस्था में एक अंजान लड़की के प्रति आशक्त हुआ था किंतु वह उससे प्रणय सूत्र में नहीं बँध सका। कालांतर में उस लड़की का विवाह सेना में कार्यरत एक सूबेदार से हो गया। लहना सिंह भी सेना में भर्ती हो गया। अचानक अनेक वर्षों के बाद उसे ज्ञात हुआ कि सूबेदारिन ही वह लड़की है जिससे उसने कभी प्रेम किया था। सूबेदारिन ने उससे निवेदन किया कि वह उसके पति सेना में भर्ती व एकमात्र पुत्र बोधा सिंह की रक्षा करेगा। लहना ने कहा था कि उस वचन को निभाएगा और अपने प्राणों का बलिदान कर उसने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया। यही उसका वास्तविक प्रेम था।
7. ‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है ? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है ?
उत्तर ⇒ ‘उसने कहा था’ कहानी पाँच भागों में बँटी हुई है। इस पूरी कहानी में तीन भागों में युद्ध का वर्णन है। द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ भाग में युद्ध के दृश्य हैं।
8. कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें।
उत्तर ⇒ कहानी का मुख्य पात्र लहना सिंह है जिसके इर्द-गिर्द कहानी के घटनाक्रम घूम रहे हैं। उसके अतिरिक्त अन्य पात्र निम्नलिखित हैं –
1. एक बालिका – जिसकी भेंट कभी किशोरावस्था में लहना सिंह से हुई थी तथा कालान्तर में उसका विवाह सूबेदार हजारा सिंह के साथ हुआ।
2. लहना सिंह – कहानी का मुख्य पात्र।
3. हजारा सिंह – सूबेदार।
4. बोधा सिंह – हजारा सिंह का पुत्र।
5. लपटन साहब – सेना का एक उच्च अधिकारी।
6. वजीरा सिंह – एक सैनिक।
9. “जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।” वजीरा सिंह के इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर ⇒ वजीरा सिंह जो पलटन का विदूषक है लहना सिंह को कहता है कि अपने स्वास्थ्य की रक्षा करो। जाड़ा की ठंढ मौत का कारण बन सकती है। मरने के बाद तुम्हें कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। यदि निमोनिया से तुम्हारी मृत्यु हो जाती है तो तुम्हें कोई मुरब्बा अथवा अन्य स्वादिष्ट वस्तुएँ नहीं मिलेंगी। जीवन का सुख फिर नहीं मिलेगा। साथ ही तुम अपने अस्तित्व को इस प्रकार समाप्त कर दोगे, अर्थात् मृत्यु ही अन्तिम सच्चाई है।
10. “कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ?
उत्तर ⇒ यह कथन उस देश (सम्भवतः फ्रांस) की एक महिला का है। उसके बंगले के बगीचे में जब वजीरा सिंह अथवा उसके अन्य साथी जाते हैं तो वहाँ की मालकिन उक्त महिला इन लोगों को फल, दूध तथा अन्य भोज्य पदार्थ बहुत प्रसन्न होकर देती है तथा उसके लिए उनसे पैसे नहीं लेती है। उसे इस बात की प्रसन्नता है कि उक्त सैनिक इसके देश को जर्मन हमलावरों से रक्षा करने के लिए आए हुए हैं। अतः वह उन सैनिकों को अपना रक्षक मानकर उनका स्वागत-सत्कार करने को तत्पर रहती है।
11. “कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।” वजीरा के इस कथन में किसकी ओर संकेत है ?
उत्तर ⇒ यह कथन उस देश (सम्भवतः फ्रांस) की एक महिला का है। उसके बंगले के बगीचे में जब वजीरा सिंह अथवा उसके अन्य साथी जाते हैं तो वहाँ की मालकिन उक्त महिला इन लोगों को फल, दूध तथा अन्य भोज्य पदार्थ बहुत प्रसन्न होकर देती है तथा उसके लिए उनसे पैसे नहीं लेती है। उसे इस बात की प्रसन्नता है कि उक्त सैनिक इसके देश को जर्मन हमलावरों से रक्षा करने के लिए आए हुए हैं। अतः वह उन सैनिकों को अपना रक्षक मानकर उनका स्वागत-सत्कार करने को तत्पर रहती है।
12. लहना के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता है ?
उत्तर ⇒ लहना के गाँव में एक तुर्की मौलवी पहुँचकर वहाँ के लोगों को प्रलोभित करता है। वह उनलोगों को मीठी-मीठी बातों से भुलावे में डालने का प्रयास करता है। वह गाँववालों को कहता है कि जब जर्मन शासन आएगा तो तुमलोगों के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। तुमलोग सुख-चैन की वंशी बजाओगे। तुम्हारी सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँगी।
13. ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर सूबेदारनी का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर ⇒ सूबेदारनी कहानी में सिर्फ दो बार आती है। एक बार कहानी के आरंभ में ही, दूसरी बार कहानी के अंतिम भाग में, वह भी लहनासिंह की स्मृतियों में। लेकिन कहानी में सूबेदारनी का चरित्र लहनासिंह के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण चरित्र है। उससे पहली मुलाकात आठ वर्ष की बालिका के रूप में होती है जो अपने ही हमउम्र लडके के मजाक से लज्जाती है। लेकिन उसके व्यक्तित्व में पहला परिवर्तन ही हमें तब नजर आता है, लहना सिंह के इस प्रश्न के जबाब में कि तेरी कुड़माई हो गई और जब वह यह कहती है कि “हाँ हो गई देखते नहीं रेशम से कढ़ा सालू।” उसका इतने विश्वास के साथ जवाब देना यह बताता है कि जैसे सगाई के साथ वह एकाएक बहुत बड़ी हो गयी है, इतनी बड़ी कि उसमें इतना विश्वास आ गया है कि वह दृढ़तापूर्वक जवाब दे सके कि “हाँ हो गई।” जाहिर है विश्वास की यह अभिव्यक्ति सूबेदारनी के व्यक्तित्व का नया पहलू है। फिर भी अभी वह यह समझने में असमर्थ है कि ‘कुड़माई’ का अर्थ क्या है। इसलिए या लड़की होने के कारण अपनी भावनाओं को या तो वह व्यक्त नहीं करती इसलिए ऐसा नहीं लगता कि कुड़माई का उस पर भी वैसा ही। आघात लगा है जैसा लहना सिंह पर लगा था।
किन्तु लहनासिंह के साथ उसके संबंध कितने गहरे थे इसका अहसास भी कहानी में सूबेदारनी के माध्यम से ही होता है। आठ साल की नादान-सी उम्र में जिस लड़के से उसका मजाक का संबंध बना था उसे वह पच्चीस साल बाद भी अपने मन-मस्तिष्क से नहीं निकाल पाई। जबकि इस दौरान वह किसी और की पत्नी बन चुकी थी उसका घर-परिवार था। जवान बेटा था। और जैसा कि कहानी से स्पष्ट होता है वह अपने घर-परिवार से सुखी और प्रसन्न थी।
लेकिन पच्चीस साल बाद भी जब लहनासिंह उसके सामने आता है तो वह उसे तत्काल पहचान जाती है। न केवल पहचान जाती है बल्कि अपने बचपन के संबंधों के बल पर उसे विश्वास है कि अगर वह लहनासिंह को कुछ करने को कहेगी तो वह कभी इनकार नहीं करेगा। निश्चय ही यह विश्वास उसके अन्दर लहनासिंह के व्यक्तित्व से नहीं पैदा हुआ बल्कि यह स्वयं उसके मन में लहनासिंह के प्रति जो भावना थी उससे पैदा हुआ था। लहनासिंह के प्रति उसके अंतर्मन में बसी लगाव की भावना का इस तरह पच्चीस साल बाद भी जिन्दा रहना सूबेदारनी के व्यक्तित्व को नया निखार देता है। इस अर्थ में वह परंपरागत भारतीय नारी से भिन्न नजर आती है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि सूबेदारनी अपने घर-परिवार के दायित्व से विमुख है। बल्कि इसके ठीक विपरीत लहनासिंह से उसकी पच्चीस साल बाद हुई मुलाकात उसके अपने घर-परिवार के प्रति गहरे दायित्व बोध को भी व्यक्त करती है। वह लहना सिंह से प्रार्थना करती है कि जिस तरह बचपन में उसने तांगे से उसे बचाया था, उसी तरह अब उसके पति और पुत्र के प्राणों की भी रक्षा करे। इस तरह उसमें अपने पति और पुत्र के प्रति प्रेम और कर्तव्य की भावना भी है।
हम कह सकते हैं कि सूबेदारनी के लिए जितना सत्य अपने पति और पत्र के प्रति प्यार और कर्त्तव्य है उतना ही सत्य उसके लिए वे स्मृतियाँ भी हैं। जो लहनासिंह के प्रति उसके लगाव को व्यक्त करती है। उसके चरित्र के दो पहलू हैं और इनसे ही उसका चरित्र महत्त्वपूर्ण है।
14. ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर ⇒ लहनासिंह से हमारा पहला परिचय अमृतसर के बाजार में होता है। उसकी उम्र सिर्फ 12 वर्ष है। किशोर वय, शरारती चुलबुला। उसका यह शरारतीपन बाद में युद्ध के मैदान में भी दिखाई देता है। वह अपने मामा के यहाँ आया हुआ है। वहीं बाजार में उसकी मुलाकात 8 वर्ष की एक लड़की से होती है। अपनी शरारत करने की आदत के कारण वह लड़की से पूछता है-“तेरी कुड़माई हो गई।” और फिर यह मजाक ही उस लड़की से उसका संबंध सत्र बन जाता है। लेकिन मजाक-मजाक में पूछा गया यह सवाल उसके दिल में उस अनजान लड़की के प्रति मोह पैदा कर देता है। ऐसा ‘मोह’ जिसे ठीक-ठीक समझने की उसकी उम्र नहीं है। लेकिन जब लड़की बताती है कि हाँ उसकी सगाई हो गई है, तो उसके हृदय को आघात लगता है। शायद उस लड़की के प्रति उसका लगाव इस खबर को सहन नहीं कर पाता और वह अपना गुस्सा दूसरों पर निकालता है। लहनासिंह के चरित्र का यह पक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन असामान्य नहीं। लड़की के प्रति लहनासिंह का सारा व्यवहार बालकोचित है। लड़की के प्रति उसका मोह लगातार एक माह तक मिलने-जुलने से पैदा हुआ है और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन लहनासिंह के चरित्र की एक और विशेषता का प्रकाशन बचपन में ही हो जाता है, वह है उसका साहस। अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे को बचाने की कोशिश। लहनासिंह जब सूबेदारनी से मिलता है तो वह बताती है कि किस तरह एक बार उसने उसे तांगे के नीचे आने से बचाया था और इसके लिए वह स्वयं घोड़े के आगे चला गया था। इस तरह लहनासिंह के चरित्र के ये दोनों पक्ष आगे कहानी में उसके व्यक्तित्व को निर्धारित. करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। एक अनजान बालिका के प्रति मन में पैदा हुआ स्नेह भाव और दूसरा उसका साहस।
लहनासिंह किसान का बेटा है, खेती छोड़कर सिपाही बन जाता है। लेकिन सिपाही बन जाने के बाद भी उसकी मानसिकताएँ उसके स्वप्न और उसकी आकांक्षाएँ किसानों-सी ही रहती है। सेना में वह मामली सिपाही है जमादार के पद पर। लेकिन वहाँ भी किसानी जीवन की समस्याएँ उसका पीछा नहीं छोड़तीं। वह छुट्टी लेकर अपने गाँव जाता है। जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी के लिए। कहानीकार यह संकेत नहीं देता है कि लहनासिंह विवाहित है या
अविवाहित। लेकिन लहनासिंह की बातों से यही लगता है कि वह अविवाहित है। उसका एक भतीजा है-कीरतसिंह जिसकी गोद में सिर रखकर वह अपने बाकी दिन गुजारना चाहता है। अपने गाँव, अपने खेत, अपने बाग में। उसे सरकार से किसी जमीन-जायदाद की उम्मीद नहीं है न ही खिताब की। एक साधारण जिन्दगी जी रहा है उतना ही साधारण जितनी कि किसी भी किसान या सिपाही की हो सकती है। उस लड़की की स्मृति भी समय की पर्तों के नीचे दब चुकी है जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई।
लेकिन उसके साधारण जीवन में जबर्दस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात 25 साल बाद सूबेदारनी से होती है। सूबेदारनी उसे इतने सालों बाद भी देखते ही पहचान लेती है। इससे पता चलता है कि बचपन की घटना उसको कितनी अधिक प्रभावित कर गई थी। जब वह उसे बचपन की घटनाओं का स्मरण कराती है तो वह आवाक्-सा रह जाता है। भूला वह भी नहीं है, लेकिन समय ने उस पर एक गहरी पर्त बिछा दी थी, आज एकाएक धूल पोछकर साफ हो गई है। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों को अबतक अपने मन में जिलाये रखा। यह लहनासिंह के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। उसी संबंध के बल पर सूबेदारनी का यह विश्वास करना कि लहनासिंह उसकी बात टालेगा नहीं लहनासिंह के लिए और भी विस्मयकारी था। वस्तुतः उसका लहनासिंह पर यह विश्वास ही बचपन के उन संबंधों की गहराई को व्यक्त करता है और इसी विश्वास की रक्षा करना लहनासिंह के जीवन की धुरी बन जाता है।
लेकिन मृत्यु शय्या पर उसकी नजरों के आगे दो ही चीजें मंडराती हैं-एक सूबेदारनी का कहा वचन और उसका आम के बाग में कीरतसिंह के साथ आम खाना। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों के बल पर लहना सिंह पर जो भरोसा किया था उसी भरोसे के बल पर उसने अपने पति और पुत्र की जीवन की रक्षा की भीख माँगी थी, लहनासिंह अपनी जान देकर उस भरोसे की रक्षा करता है। यह विश्वास और त्याग सूबेदारनी और लहनासिंह के संबंधों की पवित्रता और गहराई पर मोहर लगा देता है। स्त्री-पुरुष के बीच यह बिलकुल नये तरह
का संबंध है. और इस दृष्टि से लहनासिंह एक नये तरह का नायक है जो नये सूक्ष्म रूमानी मानवीय संबंधों की एक आदर्श मिसाल सामने रखता है।
अपने व्यक्तित्व की उन ऊँचाइयों के बावजूद उसकी मृत्यु त्रासद कही जाएगी। उसकी चतराई एवं उसकी साहसिकता जिसके कारण जर्मनों को शिकस्त खानी पड़ी इस योग्य भी नहीं समझी जाती कि कम से कम मृत्यु की सूचना में इतना उल्लेख तो होता कि युद्ध के .दौरान उसने साहस दिखलाते हुए प्राणोत्सर्ग किया बल्कि समाचार इस रूप में छपता है कि “मैदान में घावों से मरा”। इससे यह जाहिर होता है कि जिस सबेदारनी के कारण इसके पति और पत्र की रक्षा करता है उसके लिए भी लहनासिंह का बलिदान अकारध ही चला जाता है। लहनासिंह का ऐसा दुखद अंत उसे त्रासद (frezedy) नायक बना देता है